जाहि दिन हम मरब…

कविता, राजन दास। हमर समाज बाजार मे रहत ओ घनिष्ठ मित्र लोकनि स्तब्ध भ’ जेताह हमर परिवार नष्ट भ’ जायत जाहि दिन हम मरब..